द्विदिवसीय अंगदर्शन : रूट(1) : देवघर



द्विदिवसीय अंगदर्शन : रूट(1) : देवघर


(1) बाबा वैद्यनाथ मंदिर, (2) नंदन पहाड़, (3) सत्संग आश्रम, (4) रामकृष्ण मिशन विद्यापीठ, (5) तपोवन, (6) नौलक्खा मंदिर, (7) त्रिकुट पर्वत
* प्रथम दिन : 1,2,3,4 एवम द्वितीय दिन : 5,6,7

(1) बाबा वैद्यनाथ मंदिर

देवघर का सबसे मुख्य आकर्षण यहां स्थित बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक बाबा बैद्यनाथ मंदिर है। इसके अलावा अन्य देवी-देवताओं के भी मंदिर यहां स्थित हैं। इस धार्मिक स्थल के एक पौराणिक मान्यता भी जुड़ी हुई है, माना जाता है कि यहां रावण ने भगवान शिव की पूजा की थी और अपने 10 सिरों को बलिदान रूप में चढ़ाया था, जिसके बाद भोलेनाथ एक वैद्य के रूप में रावण के ठीक करने के लिए आए थे। इस पौराणिक घटना की वजह से इस मंदिर नाम बाबा बैद्यनाथ पड़ा।

यह मंदिर भारत के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है, जहां दो मंदिर देवी पार्वती को समर्पित हैं, जो शिवशक्ति के पवित्र बंधन को प्रदर्शित करते हैं। श्रावन मास के दौरान भक्त पवित्र गंगा से जल से ज्योतिर्लिंग का जलाभिषेक करते हैं। 12 ज्योतिर्लिंगों के लिए कहा जाता है कि जहां-जहां महादेव साक्षत प्रकट हुए वहां ये स्थापित की गईं। इसी तरह पुराणों में वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की भी कथा है जो लंकापति रावण से जुड़ी है।

एक और दंत कथा

भगवान शिव के भक्त रावण और बाबा बैजनाथ की कहानी बड़ी निराली है। पौराणिक कथा के अनुसार दशानन रावण भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए हिमालय पर तप कर रहा था। वह एक-एक करके अपने सिर काटकर शिवलिंग पर चढ़ा रहा था। 9 सिर चढ़ाने के बाद जब रावण 10वां सिर काटने वाला था तो भोलेनाथ ने प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिए और उससे वर मांगने को कहा।
तब रावण ने ‘कामना लिंग’ को ही लंका ले जाने का वरदान मांग लिया। रावण के पास सोने की लंका के अलावा तीनों लोकों में शासन करने की शक्ति तो थी ही साथ ही उसने कई देवता, यक्ष और गंधर्वो को कैद कर के भी लंका में रखा हुआ था। इस वजह से रावण ने ये इच्छा जताई कि भगवान शिव कैलाश को छोड़ लंका में रहें। महादेव ने उसकी इस मनोकामना को पूरा तो किया पर साथ ही एक शर्त भी रखी। उन्होंने कहा कि अगर तुमने शिवलिंग को रास्ते में कही भी रखा तो मैं फिर वहीं रह जाऊंगा और नहीं उठूंगा। रावण ने शर्त मान ली।
इधर भगवान शिव की कैलाश छोड़ने की बात सुनते ही सभी देवता चिंतित हो गए। इस समस्या के समाधान के लिए सभी भगवान विष्णु के पास गए। तब श्री हरि ने लीला रची। भगवान विष्णु ने वरुण देव को आचमन के जरिए रावण के पेट में घुसने को कहा। इसलिए जब रावण आचमन करके शिवलिंग को लेकर श्रीलंका की ओर चला तो देवघर के पास उसे लघुशंका लगी।


ऐसे में रावण एक ग्वाले को शिवलिंग देकर लघुशंका करने चला गया। कहते हैं उस बैजू नाम के ग्वाले के रूप में भगवान विष्णु थे। इस वहज से भी यह तीर्थ स्थान बैजनाथ धाम और रावणेश्वर धाम दोनों नामों से विख्यात है। पौराणिक ग्रंथों के मुताबिक रावण कई घंटो तक लघुशंका करता रहा जो आज भी एक तालाब के रूप में देवघर में है। इधर बैजू ने शिवलिंग धरती पर रखकर को स्थापित कर दिया।
जब रावण लौट कर आया तो लाख कोशिश के बाद भी शिवलिंग को उठा नहीं पाया। तब उसे भी भगवान की यह लीला समझ में आ गई और वह क्रोधित शिवलिंग पर अपना अंगूठा गढ़ाकर चला गया। उसके बाद ब्रह्मा, विष्णु आदि देवताओं ने आकर उस शिवलिंग की पूजा की। शिवजी का दर्शन होते ही सभी देवी देवताओं ने शिवलिंग की उसी स्थान पर स्थापना कर दी और शिव-स्तुति करके वापस स्वर्ग को चले गए। तभी से महादेव ‘कामना लिंग’ के रूप में देवघर में विराजते हैं।



बैजू मन्दिर

बाबा बैद्यनाथ मन्दिर परिसर के पश्चिम में देवघर के मुख्य बाजार में तीन और मन्दिर भी हैं। इन्हें बैजू मन्दिर के नाम से जाना जाता है। इन मन्दिरों का निर्माण बाबा बैद्यनाथ मन्दिर के मुख्य पुजारी के वंशजों ने किसी जमाने में करवाया था। प्रत्येक मन्दिर में भगवान शिव का लिंग स्थापित है।
कुछ कुछ पंडितों के अनुसार बैजनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना स्वयं भगवान विष्णु ने की है। इस स्थान के कई नाम प्रचलित हैं जैसे हरितकी वन, चिताभूमि, रावणेश्वर कानन, हार्दपीठ और कामना लिंग। कहा जाता है कि यहां आने वाले सभी भक्‍तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इसलिए मंदिर में स्‍थापित श‍िवलिंग को कामना लिंग भी कहते हैं।

(2) नंदन पहाड़

नंदन पहाड़ झारखंड के देवघर जिले में एक पहाड़ी की चोटी पर बना एक मनोरंजन पार्क है। यह पार्क कई गतिविधियों के साथ एक पिकनिक स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। यह पार्क इतना ज्यादा आकर्षक स्थल है जहां हर उम्र के लोग यात्रा करते हैं। इस पार्क के क्षेत्र में लोग बोटिंग का मजा भी ले सकते हैं और सूर्योदय के आकर्षक दृश्य भी देख सकते हैं। बच्चों के मनोरंजन के भी बहुत साधन है ।

(3) सत्संग आश्रम


सत्संग आश्रम अनुकुल चंद्र द्वारा स्थापित देवघर के दक्षिण-पश्चिम में ठाकुर अनुकुलचंद्र के भक्तों के लिए एक पवित्र स्थान है। ठाकुर अनुकुलचंद्र का जन्म 14 सितंबर 1888 को हुआ था। बंगाल के पूर्वी क्षेत्र (तब अविभाजित भारत) के पब्ना जिले में हिमायतपुर नामक एक छोटे से गांव में जो अब बांग्लादेश में है, भगवान इस दुनिया को बचाने के लिए आए थे। वह श्रीमान के लिए पैदा हुआ था। शिबचंद्र चक्रवर्ती (शांडिलिया गोत्र, कन्याकुब्जा ब्राह्मण) और मनमोहिनी देवी। अनुकुलचंद्र अपने शुरुआती जीवन से बेहद मां केंद्रित थे। उनकी मां अपने पूरे जीवन में अपने गुरु बने रहे। वह मानव जाति का प्रेमी था। अनुकुलचंद्र ने पब्ना में आश्रम की स्थापना की (बाद में इसे सत्संग नाम दिया गया)। आध्यात्मिक विकास को बढ़ावा देने के लिए भारत में देवघर में 1946 में एक नया आश्रम स्थापित किया गया था। देवघर में सत्संग आश्रम समाज में सभी तरह के लोगों के देवघर में आकर्षण का एक प्रमुख स्थान बन गया है ।

(4) रामकृष्ण मिशन विद्यापीठ



देवघर के ह्रदय स्थल स्थित रामकृष्ण मिशन विद्यापीठ के दिव्य वातावरण का अनुभव प्राप्त होता है । इस विद्यापीठ की स्थापना सन् 1922 में की गई थी। यह राम-कृष्ण मिशन का सबसे पुराना शैक्षिक संस्थान है।
वर्तमान में अब यह लड़कों के लिए एक उच्च माध्यमिक विद्यालय है जहां स्वामी विवेकानंद के भाई शिष्यों ने दौरा किया था। यह संस्थान भिक्षुओं और ब्रह्मचारियों द्वारा चलाया जाता है जिसमें शिक्षक भारत के विभिन्न राज्यों और कुछ अन्य देशों के भी शामिल हैं।
यहां भारत के प्राचीन और जनजातीय विरासत को पदर्शित करता एक संग्रहालय भी है, इसके अलावा आप यहां एक ग्रीनहाउस और एक औषधीय बाग भी देख सकते हैं। यहां स्थित राम कृष्ण मंदिर भी मुख्य आकर्षण का केंद्र है।

(5) तपोवन

तपोवन पहाड़ियां देवघर से 10 किमी दूर स्थित हैं और तपो नाथ महादेव, जो भगवान शिव का मंदिर है, वहां का एक विशेष धार्मिक स्थल है। यहां का एक और आकर्षण, दरार वाली चट्टान है, जिसकी आंतरिक सतह में कथित तौर पर भगवान हनुमान का चित्र देखा जा सकता है। यह विशेष रूप से अद्भुत है क्योंकि दरार में रंग और ब्रश का इस्तेमाल करना चित्रकारी करना एकदम असंभव है। पहाड़ी के नीचे एक छोटा कुंड (जलकुंड) है और ऐसा माना जाता है कि देवी सीता इसमें स्नान करती थीं। इस प्रकार, इसे स्थानीय लोगों द्वारा सूक्त कुंड या सीता कुंड नाम दिया गया है।तपोवन शब्द का अर्थ है ध्यान का वन और एक समय में, यह नागाओं (साधुओं) के लिए ध्यान स्थल (तपोभूमि) था। इसीलिए सका नाम तपोवन रखा गया है।
तपोवन स्थित हनुमान मंदिर की अपनी अलग ही पहचान है. यहां रामनवमी के अवसर पर ध्वजा चढ़ाने की अति प्राचीन परंपरा आज तक चली आ रही है । जानकार बताते हैं कि यहां जब रावण तपस्या कर रहा था तो उसकी तपस्या भंग करने के लिए पहाड़ को बीचो-बीच फाड़ कर हनुमान जी प्रकट हुए थे.
तपोवन हनुमान मंदिर के पुरोहित अशोक तिवारी कहते तो यहां आज भी फटे पहाड़ के ऊपर हनुमान जी की कुछ आकृतियां दिखाई देती है.
वहीं बंगाल से आए भक्त जलेश्वर चंद्र मल्लिक का कहना है कि रामनवमी के दिन इस मंदिर में ध्वजा चढ़ाने और सच्ची श्रद्धा से की गयी पूजा-अर्चना का फल अवश्य मिलता है.
यही कारण है कि आज के दिन बड़ी संख्या में दूर-दराज सहित आस-पास के राज्यों से लोग यहां आते रहते है.

(6) नौलक्खा मंदिर


बाबा बैद्यनाथ धाम मुख्य मंदिर से सिर्फ 1.5 किमी दूर है। 146 फीट ऊंचा, यह मंदिर राधा-कृष्ण को समर्पित है। चूंकि इसके निर्माण में 9 लाख रुपए लगे थे, इसलिए इसे नौलखा (नौ लाख) मंदिर के रूप में भी जाना जाता है। यह मंदिर बेलूर के रामकृष्ण मंदिर से काफी मिलता-जुलता है। यह मंदिर पश्चिम बंगाल के कोलकाता में पथुरिया घाट राजा के परिवार की रानी चारुशीला द्वारा बनवाया गया था। चारुशीला अपने पति और बेटे की मौत का शौक मना रही थी और उससे उबरने के लिए संत बालानंद ब्रह्मचारी ने उन्हें इस मंदिर के निर्माण की सलाह दी थी।

(7) त्रिकुट पर्वत

त्रिकूट पर्वत दुमका रोड पर देवघर से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। तीन शिखरों का पर्वत होने के कारण इस पहाड़ को त्रिकुट पहाड़ के नाम से जानते हैं, स्थानीय लोगों का मानना है कि पहाड़ के तीन चोटी ब्रह्मा विष्णु और महेश के मुकुट के प्रतीक हैं। इसके अलावा पास में दो छोटी चोटी है जिन्हें गणेश और कार्तिक हिल्स कहा जाता है। इस पहाड़ के तीनों चोटियों में सबसे ऊंची चोटी 2470 फिट की है।
त्रिकुट रोपवे भारत का सबसे ऊँचा ऊर्ध्वाधर रोपवे है जिसका अधिकतम लेंस कोण 44 डिग्री है। रोपवे की लंबाई 766 मीटर (2512 फीट) है। इस पर्वत की ऊंचाई 392 मीटर (1282 फीट) है। पर्यटकों के लिए कुल 25 केबिन उपलब्ध हैं, जिसमें प्रत्येक केबिन में चार लोग बैठ सकते हैं और तिकड़ी चोटी तक पहुंचने के लिए केवल 8 मिनट हैं। रोपवे की क्षमता 500 लोग प्रति घंटे है।
त्रिकुट पहाड़ जाने के लिए आप रोपवे का इस्तेमाल कर सकते हैं या फिर ट्रैकिंग करते हुए भी जा सकते हैं। इन दोनों का ही अपना एक अलग अनुभव है। इस पहाड़ पर आपको कई सारे स्थल देखने को मिलेंगे जैसे त्रिकूटाचल महादेव मंदिर, दयानंद आश्रम, गणेश मंदिर, हनुमान मंदिर इत्यादि।
त्रिकुट रोपवे का समय और शुल्क
अगर आप रोपवे की मदद से पहाड़ी पर जाना चाहते हैं तो लगभग प्रति व्यक्ति ₹130 देने होंगे। रोपवे सेवा सुबह 8:00 बजे से लेकर शाम 4:00 बजे तक चालू रहती है। शाम 4:00 बजे के बाद केवल पहाड़ी पर गए पर्यटक ही वापस आ सकते हैं।
त्रिकुट पहाड़ पर देखने के लायक जगह
इस पर्वत के उपर कई सारे स्थल है जिन्हें देखने के लिए पर्यटक पहुंचते है पर्वत के उपर देखने लायक जगह के नाम नीचे दिए गए हैं।
हनुमान छाती, सीता दीप, रावण के पुष्पक विमान का, अँधेरी गुफा, सुसाइड प्वाइंट, नारायण शिला, गणेश पर्वत।
इन सभी के अलावा बरसात के मौसम में आपको कई सारे छोटे छोटे झरने देखने को मिलेंगे। अगर आप इन सभी स्थलों को देखना चाहते हैं तो अपने साथ एक टूरिस्ट गाइड लेकर जरुर जाएँ ताकि आप आसानी से इन स्थलों तक पहुंच सकें और इनके बारे में जानकारी प्राप्त कर सकें।
बाबा त्रिकुटेश्वर नाथ का मंदिर
पहाड़ की तराई में बाबा त्रिकुटेश्वर नाथ का मंदिर है. मान्यता है कि इसकी स्थापना रावण ने ही की थी. लोगों का कहना है कि यहां माता सीता ने जो दीप जलाया था, वह आज भी मौजूद है. इसे देखने दूर-दूर से लोग यहां पहुंचते हैं.

चोटी पर शालिग्राम पत्थर


इस पहाड़ की चोटी पर विश्व का सबसे बड़ा शालिग्राम पत्थर है, जिसे विष्णु टॉप कहा जाता है. सिर्फ दो कोण पर टिके इस पत्थर के बीच 14 इंच का फासला है. मान्यता है कि जो इसके बीच से पार हो जाता है उसके ग्रह कट जाते हैं. इसके अलावा यहां हाथी पहाड़ भी लोगों के आकर्षण का केंद्र है. जहां 40 फिट से बड़ी हाथी की आकृति की चट्टान है और शेष नाग की आकृति की एक नाव रूपी आसन भी है, जिसे भगवान विष्णु के शयन के रूप में देखा जाता है.
अगर आप धार्मिक कथाओं के साथ प्रकृति की खूबसूरती, रहस्य और रोमांच का अनुभव करना चाहते हैं तो एक बार त्रिकूट की पहाड़ी पर जरूर आएं ।


लेखक: Debajyoti MukherjeeSocial Entrepreneur, Entrepreneurship Development Activist , Life Skill Trainer & Mentor
Blog Express

My hobby is blogging. I do blog everyday.

1 Comments

Previous Post Next Post